मंदिर सर्वेक्षण परियोजना (उत्तर क्षेत्र), भोपाल

महत्वपूर्ण परियोजनाऐं

मंदिर सर्वेक्षण परियोजना(उ.क्षे.), भोपाल की गौरवशाली शुरुआत मंदिर स्थापत्य कला के मर्मज्ञ श्री कृष्णदेव द्वारा इसे प्रथम अधीक्षण पुरातत्वविद् के रूप में की गई, जिन्होंने खजुराहो के चंदेल कालीन मंदिरो का विस्तृत अध्यन कर डाला। अपने कार्यकाल में उन्होंने मध्यप्रदेश में स्थित भोजपुर, भिलसा, ग्यारसपुर, बढ़ोह, पठारी, उदयपुर, सर्वया, कदवाहा, अमरोली और ग्वालियर के मंदिरों का अध्ययन किया।सन् १९६९ में उन्होंने 'उत्तरी भारत के मंदिर ' नामक एक पुस्तक की रचना की,जिसको नेशनल बुक ट्रस्ट इंडिया, नई दिल्ली द्वारा प्रकाशित किया गया।इस पुस्तक में उन्होंने नागर शैली के मंदिरो के छाया-चित्रों के साथ बहुत ही सार गर्भित रूप में प्रकाश डाला हैं।इस पुस्तक में कुल दस अध्याय हैं, जिनमें गुप्तयुगीन मंदिरों (४००-७००ई.), प्रारंभिक चालुक्य मंदिरों (५००-७५०), उत्तर चालुक्य मंदिरों ,प्रतिहार कालीन मंदिरों, राजस्थान के मंदिरों, गुजरात के मंदिरों(सोलंकी), कच्छपघात कालीन मंदिरों, कलचुरि कालीन, चंदेलकालीन तथा उड़ीसा के मंदिरों का विवरण दिया किया गया हैं। इसके अतिरिक्त प्रथम बार खजुराहो के मंदिरों को उनके द्वारा वर्गीकृत किया गया।परिणाम स्वरुप उन्होंने 'खजुराहो के मंदिर ' नामक एक अन्य पुस्तक लेखन किया जिसको १९९० में महानिदेशक, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण द्वारा 'मंदिरों का पुरातत्वीय सर्वेक्षण ' श्रंखला ५ के अंतर्गत दो भागों में प्रकाशित किया गया। श्री कृष्ण देव द्वारा लिखी गई एक अन्य पुस्तक 'भारत के मंदिर '(टेम्पल्स ऑफ़ इंडिया) का भी उल्लेख कर देना उचित प्रतीत होता हैं।जोकि दो भागों में सन् १९९५ में प्रकाशित की गई।यह पुस्तक मंदिर स्थापत्य कला के शोधकर्ताओं के लिए एक मील का पत्थर साबित हुई हैं।

सन् १९६३ से १९७७ तक मंदिर सर्वेक्षण परियोजना (उ. क्षे.), भोपाल में कई विद्वानों ने अधीक्षण पुरातत्वविद् के रूप में कार्य किया।श्री एम.डी. खरे ने अशोक नगर के थोबन के मंदिरों का अध्ययन किया जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न वैष्णव व शैव मंदिरों को प्रकाश में लाया गया (आई ऐ आर-१९६९-७०, ७२-७३)।इसके अतिरिक्त उन्होने बेसनगर(विदिशा), नागरी, बैराट, मथुरा, श्रावस्ती, कौशाम्बी, नागार्जुनकोंडा तथा तक्षशिला के चौथी शताब्दी ई.पू. से लेकर तृतीय शताब्दी ई. के मध्य निर्मित मंदिरों का भी अध्ययन किया(आई ऐ आर १९६९)।

सन् १९७७ से १९८४ तक का समय प्रतिहारकालीन मंदिर स्थापत्य कला के अध्ययन की दृष्टि से बहुत ही फलदायक रहा।इस दौरान मंदिर स्थापत्यकला के एक और विद्वान, श्री आर. डी. त्रिवेदी ने मंदिर सर्वेक्षण परियोजना (उ.क्षे.), भोपाल के अधीक्षण पुरातत्वविद् के रूप में सात वर्षों तक उ.प्र. में स्थित प्रतिहार कालीन मंदिरों का गहन अध्ययन किया।इसी कड़ी में उनहोंने म.पर. स्थित शिवपुरी, मुरैना तथा विदिशा, उ.पर. स्थित ललितपुर के मंदिरों को प्रकाश में लाने का प्रयास किया।

उनहोंने प्रतिहार कालीन मंदिरों को विकास की दृष्टि से तीन चरणों में विभाजित किया।प्रथम चरण के मंदिरों को उन्होंने ७२५-८०० शताब्दी के मध्य रखा हैं।इनमें मुरैना जिले के नरेसर और बटेसर मंदिरों को शिवपुरी जिले में स्थित महुआ के मंदिरों को रखा गया। द्वितीय चरण के मंदिरों का ८००-८५० ई. तक के मध्य प्रतिस्थापित किया हैं, जिनमें देवगढ़ (उ.प्र.) स्थित शांतिनाथ, ललितपुर (उ.प्र.) स्थित कुरैयाबीर मंदिर, शिवपुरी (म.प्र.) स्थित केलधार, टीकमगढ़ स्थित उमरी सूर्य मंदिर (म.प्र.) में रखा जा सकता है।अंतिम चरण (तृतीय चरण) के मंदिरों को ८५०-९५० ई. के मध्य रखा गया हैं, जिनमें महुआ स्थित चामुण्डा मंदिर, तेरही स्थित शिव मंदिर, नचना-कुठार स्थित चतुर्भुज महादेव मंदिर व विदिशा में कुटकेश्वर मंदिर है।यह सभी मंदिर म.प्र. में स्थित हैं। उन्होंने अपने सम्पूर्ण कार्य को एक पुस्तक के रूप में १९९० में प्रकाशित किया जिसका शीर्षक है - 'टेम्पल्स ऑफ़ दि प्रतिहार पीरियड इन सेंट्रल इंडिया।'

सन् १९८४ से १९९३ के मध्य डॉ. बी.एल. नागार्च के निर्देशन में मध्य भारत के कई मंदिरों का अध्ययन किया जिसका निर्माण कार्य नवीं-दसवीं शताब्दी से लेकर बारहवीं शताब्दी के मध्य मन जाता है (आईएआर १९८४-१९९८)।

तत्पश्चात् डॉ. पी.के. त्रिवेदी के दिशा-निर्देशन में मंदिर सर्वेक्षण परियोजना (उ.क्षे.), भोपाल के दल ने परमार कालीन कला व् स्थापत्य के प्रति रूचि प्रगट की तथा उनका यह अध्ययन कार्य सन् १९९३-१९९८ तक चला। डॉ. पी. के. त्रिवेदी को १९९५ में वागड़ क्षेत्र के परामार कालीन मंदिरों पर एक विस्तृत पुस्तक लिखने का भी श्रेय प्राप्त है। इस पुस्तक का शीर्षक है - 'आर्ट ट्रेडिशन ऑफ़ दि परमाराज ऑफ़ वागड़'।

मंदिर सर्वेक्षण परियोजना (उ.क्षे.), भोपाल की अध्ययन परम्परा को सन् १९९८ से २००९ तक नियमित रूप से श्री के.के. राममूर्ति, डॉ, डी. भैेंगरा, डॉ. पी.के. मिश्रा , श्री के.के. मोहम्मद, डॉ. नारायण व्यास तथा डॉ. एस.वी. वैंकटशिया ने आगे बढ़ाया। इस कड़ी में श्री के.के. राममूर्ति ने भुवनेश्वर के मंदिरों (आईएआर १९९८-९९) का अध्ययन किया तथा साथ-साथ म.प्र. स्थित पवैया, खजुराहो, कारसुंआ, डिहवारा तथा भिलसा के मंदिरों का भी (आईएआर १९९९-२०००,२०००-०१) अध्ययन किया।इसके अतिरिक्त उन्होंने छत्तीसगढ़ के भी कुछ मंदिरों पर अध्ययन किया। डॉ. पी.के. मिश्रा ने मिथिला क्षेत्र (बिहार) के मंदिरों की स्थापत्य व मूर्ति कला का अध्ययन किया तथा डॉ. नारायण व्यास ने अपने कार्यकाल में बेसनगर, साँची तथा सतधारा के उत्खननों पर हिंदी में आख्याओं का सृजन किया। सन् २००९ से २०११-२०१२ तक मंदिर सर्वेक्षण परियोजना (उ.क्षे.), भोपाल के दल ने अधीक्षण पुरातत्वविद् डॉ. के. लुर्दूसामी के कुशल दिशा निर्देशन में कच्छपघात कालीन मंदिरों का विस्तृत किया।वर्ष २००९-१०, २०१०-११ व २०११-१२ की परियोजनाओं के अंतर्गत जिला अशोक नगर स्थित कदवाहा के मंदिरों, थोबन ग्राम में स्थित गरगज, सीतामढ़ी, कुटी क्षेत्र, कुटी विस्तार क्षेत्र के मंदिरों, शिवपुरी जिले में सरवाया गढ़ी के मंदिरों, तेरही, महुआ के मंदिरों, विदिशा स्थित ग्यारसपुर के मंदिरों, मुरैना स्थित ककनमड, बटेसर, मितावली, पदावली के मंदिरों का तथा ग्वालियर स्थित सास बहु मंदिरों का विस्तृत अध्ययन उनके डिजिटल फोटोग्राफ व ऑटोकेड - रेखाचित्रों के साथ किया।वर्ष २०१२-२०१३ में डॉ. के. लोर्दूसामी के ही दिशा-निर्देशन में महाराष्ट्र के पूर्वी विदर्भ क्षेत्र में स्थित मंदिरों का सर्वेक्षण कार्य किया गया। वर्ष २०१३-१४ में डॉ. एस.एस. गुप्ता ने अपने निर्देशन में म.प्र. के सागर जिले में स्थित मंदिरों का विस्तृत अध्ययन किया। वर्तमान में २०१४-१५ की परियोजना के अंतर्गत श्री जुल्फ़ेकार अली के निर्देशन में म.प्र. के विदिशा जिले के मंदिरों का सर्वेक्षण कार्य किया जा रहा हैं।